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* 🔹 Today's motivational theme 🔹 *
* !! Fear of death !! *
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A man lived in a city. He did business with Pardesh. The hard work thrived, and it was counted in the Seths. The palace became like a mansion. His youth began to pass with great joy between Vaibhav and the elder family.
One day one of his relatives came from another city. During the conversation, he told that his eldest Seth passed away here. Poor wealth of lakhs of people was left lying.
It was said in a comfortable manner, but the man's mind was shaken. Yes, like that Seth, one day he too will die. From that moment, he was reminded of death again and again. Oh death will come, take it and everything will be left here! His body began to dry out due to worry. Lookers would see that he was not lacking in anything, but the grief within him was such that no one could be told. Gradually he fell on the bed. There was a lot of treatment, but his disease continued to increase rather than decrease. One day a monk came to his house. The man helplessly grabbed her leg and weptly told her her agony.
On hearing this, the monk laughed and said - "Curing your disease is very easy."
As if the lost soul of that man returned. Impatient, he asked - "Swamiji, what is that treatment!"
The monk said - "Look, when the idea of death comes to mind, say out loud until death comes, I will live. Try this recipe for seven days, I will come next week."
After seven days, if the sadhus come, see what the man has come out of the clutches of sickness and is singing the song with pleasure. Seeing the monk, he ran and fell at his feet and said - "Your Majesty, you have saved me. Your medicine had a magic effect on me. I understood that on the day of death, I will die on that day, not before that."
The monk said - "Watts, fear of death is the biggest fear. He does not kill as many as he kills" .. !!
* Always be happy. *
👉 Hindi translate
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*🔹 आज का प्रेरक प्रसंग 🔹*
*!! मृत्यु का भय !!*
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किसी नगर में एक आदमी रहता था। उसने परदेश के साथ व्यापार किया। मेहनत फली, कमाई हुई और उसकी गिनती सेठों में होने लगी। महल जैसी हवेली बन गई। वैभव और बड़े परिवार के बीच उसकी जवानी बड़े आनंद से बीतने लगी।
एक दिन उसका एक संबंधी किसी दूसरे नगर से आया। बातचीत के बीच उसने बताया कि उसके यहां का सबसे बड़ा सेठ गुजर गया। बेचारे की लाखों की धन-संपत्ति पड़ी रह गई।
बात सहज भाव से कही गई थी, पर उस आदमी के मन को डगमगा गई। हां उस सेठ की तरह एक दिन वह भी तो मर जाएगा। उसी क्षण से उसे बार-बार मौत की याद सताने लगी। हाय मौत आएगी, उसे ले जाएगी और सबकुछ यहीं छूट जाएगा! मारे चिंता के उसकी देह सूखने लगी। देखने वाले देखते कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, पर उसके भीतर का दुख ऐसा था कि किसी से कहा भी नहीं जा सकता था। धीरे-धीरे वह बिस्तर पर पड़ गया। बहुतेरा इलाज किया गया, लेकिन उसका रोग कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। एक दिन एक साधु उसके घर पर आया। उस आदमी ने बेबसी से उसके पैर पकड़ लिए और रो-रोकर अपनी व्यथा उसे बता दी।
सुनकर साधु हंस पड़ा और बोला - "तुम्हारे रोग का इलाज तो बहुत आसान है।"
उस आदमी के खोए प्राण मानो लौट आए| अधीर होकर उसने पूछा - "स्वामीजी, वह इलाज क्या है!"
साधु ने कहा - "देखो मौत का विचार जब मन में आए, जोर से कहो जब तक मौत नहीं आएगी, मैं जीऊंगा। इस नुस्खे को सात दिन तक आजमाओ, मैं अगले सप्ताह आऊंगा।"
सात दिन के बाद साधु आए तो देखते क्या हैं, वह आदमी बीमारी के चंगुल से बाहर आ गया है और आनंद से गीत गा रहा है। साधु को देखकर वह दौड़ा और उसके चरणों में गिरकर बोला - "महाराज, आपने मुझे बचा लिया। आपकी दवा ने मुझ पर जादू का-सा असर किया। मैंने समझ लिया कि जिस दिन मौत आएगी, उसी दिन मरूंगा, उससे पहले नहीं।"
साधु ने कहा - "वत्स, मौत का डर सबसे बड़ा डर है। वह जितनों को मारता है मौत उतनों को नहीं मारती"..!!
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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